शोधकर्ताओं ने दुर्लभ प्रजाति की पहचान की
गदग. गजेन्द्रगढ़ तालुक के शांतगेरी गांव के जंगल क्षेत्र में ट्रैप डोर मकड़ी की नई प्रजाति की खोज हुई है।
जीव विविधता शोधकर्ता मंजुनाथ एस. नायक और वन विभाग के कर्मचारी प्रकाश गाणगेरी व संगमेश कडगद ने बैरीचेलिडे परिवार के तिगिडिया जीनस से संबंधित इस नई प्रजाति को खोजा।
आकार और आवास
इस मकड़ी का आकार लगभग 1.5 से 2 इंच तक होता है। इसकी प्रजातियां सामान्यत: तटीय, मलेनाडु और अर्ध-मलेनाडु क्षेत्रों में पाई जाती हैं। ये मकडिय़ां सडक़ किनारे, जंगल की पहाडिय़ों और ढलानों में बसीं कोलावे (सुरंगनुमा) आकृति के घोंसलों में रहती हैं। इनके घोंसलों में गोलाकार सुंदर ढक्कन होता है।
जीवन शैली और शिकार
स्थानीय रूप से इसे नेलकिरुबा” या “नेलगुम्मा” कहा जाता है। इसका शरीर बालों से ढका होता है और यह जमीन के बिल में छिपकर रहती है। ये मकडिय़ां रात में सक्रिय होती हैं और मेंढक, छिपकली, चूहे, छोटे पक्षी तथा कीटों का शिकार करती हैं। खतरे की स्थिति में यह मकड़ी बिल में छिप जाती है और कभी-कभी अपने शरीर के बाल खड़े कर विशेष आवाज कर बचाव करती है।
संकट और लोकमान्यताएं
वनों की कटाई, सडक़ों का चौड़ीकरण और विकास कार्य इनकी प्रजाति के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं। कुछ क्षेत्रों में यह मान्यता है कि इन मकडिय़ों को मारकर पूजा करने से बीमारियां ठीक हो जाती हैं। वहीं, ऋतु परिवर्तन पर लड़कियों की मासिक समस्याओं को दूर करने के लिए भी इसे ताबीज में बांधकर पहनाने की प्रथा कुछ इलाकों में प्रचलित है। कई लोग इसे विषैली समझकर देखतें ही मार देते हैं।
पर्यावरणीय महत्व
ट्रैप डोर मकड़ी की ओर से बनाए गए कोलावेनुमा बिल वर्षा जल को भूगर्भ में पहुंचाने में सहायक होते हैं। साथ ही, यह मकड़ी कृषि फसलों और पेड़ों के लिए हानिकारक कीटों को खाकर प्राकृतिक कीट नियंत्रण करती है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में योगदान देती है।
मुख्य बिंदु
सामान्यत: तटीय, मलेनाडु और अर्ध-मलनाडु क्षेत्रों में पाई जाती है।
गोलाकार ढक्कन वाले आकर्षक घोंसले इसका विशेष लक्षण हैं।
