दो बार लिया मुआवजा, परिवार के सदस्य को नौकरी
फिर से 40 करोड़ रुपए से अधिक मुआवजे की मांग
कलबुर्गी. राज्य सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से समय पर धन न मिलने से परेशान गुलबर्गा विश्वविद्यालय को अब अपनी जमीन खोने वाले एक किसान को करोड़ों रुपए का मुआवजा देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
गुलबर्गा विश्वविद्यालय को 108 किसानों ने भूमि दी थी और राज्य सरकार ने 40 वर्ष पहले ही उन्हें मुआवजा दिया था।
इनमें से एक किसान ने 1971 में 60 हजार रुपए और 1993 मेंं 7 लाख से अधिक का मुआवजा प्राप्त किया था। इसके अलावा, उसके परिवार के सदस्यों को भी विश्वविद्यालय में नौकरी दी गई थी। इनसब के बावजूद जो मुआवजा मिला है वह पर्याप्त नहीं है कहकर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया है और उचित मुआवजे की मांग की है।
40 करोड़ रुपए से अधिक मुआवजे की मांग
विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि राजस्व विभाग के अधिकारियों ने इस संबंध में विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर मुआवजे के खिलाफ अपील की जाए या बातचीत के जरिए मुआवजे की राशि कम की जाए इस बारे में निर्णय लेने को कहा है। अपनी जमीन खो चुके किसानों के वकील ने उन्होंने 40 करोड़ रुपए से अधिक मुआवजे की मांग की है परन्तु विश्वविद्यालय इतनी बड़ी राशि देने की स्थिति में नहीं है।
कार्रवाई करने की आवश्यकता है
विश्वविद्यालय ने कानूनी विशेषज्ञों को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया था। कानूनी विशेषज्ञों ने जानकारी दी है कि किसान को पहले ही दो बार मुआवजा मिल चुका है और उसके परिवार को नौकरी भी दी जा चुकी है। इसके आधार पर विश्वविद्यालय को आगे की कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
बातचीत से समाधान को दिखाया समर्थन
किसानों की मांगों का बातचीत के जरिए से समाधान कर इसे सिंडिकेट की बैठक में प्रस्तुत कर इसके अनुसार मुआवजा देने के लिए अदालत को अवगत कराने के बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन बोर्ड के कुछ सदस्यों और कुछ सिंडीकेट सदस्यों ने अपना समर्थन दिखाया है। यही कारण है कि वे इस मामले को आगामी सिंडिकेट बैठक की कार्यवाही में शामिल करने के लिए दबाव बना रहे हैं।
बहस की जा रही है
विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि 20 करोड़ रुपए मुआवजा देने पर अंतिम निर्णय लेने की मांग भी व्यक्त की गई है परन्तु इस प्रस्ताव का कुछ लोगों ने विरोध किया है और यदि इतनी बड़ी राशि का मुआवजा दिया गया तो भविष्य में अन्य किसान भी यह मांग कर सकते हैं। तब विश्वविद्यालय इतना सारा पैसा कहां से लाएगा इस बात पर बहस की जा रही है।
कोई निर्णय नहीं लिया
यह सच है कि विश्वविद्यालय को जमीन देने वाले किसानों ने बड़ी मात्रा में मुआवजे की मांग की है। इस बारे में विश्वविद्यालय के वकील मामले का अध्ययन कर रहे हैं। कितना मुआवजा देना चाहिए, इस पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
–प्रो. दयानंद अगसर, कुलपति, गुलबर्गा विश्वविद्यालय