महादयी परियोजना के लिए केंद्र ने जताई आपत्तिकलसा नाला।

हुब्बल्ली. महादयी में बंडूरी नाले डायवर्जन परियोजना के लिए 71 एकड़ वन भूमि के उपयोग की मंजूरी मांगने वाली कर्नाटक सरकार के स्पष्टीकरण से असंतुष्ट होकर, केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की क्षेत्रीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने परियोजना के साइट का निरीक्षण करने का निर्णय लिया है।

उच्चस्तरीय समिति ने 20 जनवरी को आयोजित समिति की 83वीं बैठक में महादयी परियोजना की वन क्षति शमन, वन्यजीव संरक्षण योजना और प्रतिपूरक वनीकरण योजनाओं में संशोधन करने के लिए राज्य के अधिकारियों की कड़ी आलोचना की है। वन विभाग ने पहले 33 करोड़ रुपए की लागत वाली वन्यजीव संरक्षण परियोजना की योजना बनाई थी। यह बात केंद्र के ध्यान में लाई गई थी। बेलगावी डीसीएफ ने बैठक में ध्यान दिलाया कि इस परियोजना के लिए प्रतिवर्ष 50 लाख रुपए आवंटित किए जाएंगे। समिति के सदस्यों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए सवाल किया कि, इस राशि में अचानक इतनी कटौती क्यों की गई?

कर्नाटक सिंचाई निगम के अधिकारियों ने बैठक में बताया कि इस परियोजना के पानी का उपयोग केवल बरसात के मौसम में किया जाएगा तथा गर्मियों के दौरान इसे जंगली जानवरों के उपयोग के लिए आरक्षित रखा जाएगा। समिति ने सवाल किया कि परियोजना स्थल पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य से कितनी दूर है। समिति ने कहा कि नाले के बहाव को मोडऩे के लिए उपयोग होने वाले नेरसे गांव का जंगल पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र होने को लेकर केंद्रीय वन मंत्रालय की मसौदा अधिसूचना में उल्लेख किया गया है। कर्नाटक सिंचाई निगम के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि नेरसे गांव पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के दायरे में नहीं आता है।

समिति ने गोवा की ओर से इस परियोजना को लेकर उठाई जा रही चिंताओं का समाधान करने का निर्देश दिया है। गोवा का आरोप है कि नाला डायवर्जन परियोजना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना पर कोई रोक नहीं लगाई है। राज्य के अधिकारियों ने बताया कि अदालत ने सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं। अधिकारियों ने बताया कि बांध के निर्माण के दौरान 17.5 हेक्टेयर जंगल जलमग्न हो जाएगा।

राज्य सरकार ने पहले घोषणा की थी कि उपचारात्मक वनरोपण के लिए 28.40 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराई जाएगी परन्तु संशोधित प्रस्ताव में केवल 26.30 हेक्टेयर भूमि का प्रावधान किया गया है। समिति ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह सही नहीं है।

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