वैज्ञानिक सोच और कम पानी वाली फसल प्रणाली अपनाएं किसानधारवाड़ जल एवं मृदा प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) में आयोजित विश्व जल दिवस पर पौधे को पानी देकर कार्यक्रम का उद्घाटन करते जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव एवं वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश परशुराम दोड्डमनी।

वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश परशुराम दोड्डमनी ने दी सलाह

हुब्बल्ली. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव एवं वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश परशुराम दोड्डमनी ने कहा कि किसानों को पारंपरिक कृषि प्रणालियों के स्थान पर वैज्ञानिक सोच के साथ कम पानी वाली फसल प्रणाली अपनानी चाहिए तथा जैविक खेती के माध्यम से मिट्टी के जैविक गुणों को बनाए रखना चाहिए।

धारवाड़ जल एवं मृदा प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) में आयोजित विश्व जल दिवस पर पौधे को पानी देकर कार्यक्रम का उद्घाटन कर न्यायाधीश दोड्डमनी ने कहा कि विश्व जल दिवस का उद्देश्य जल के महत्व, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। हमारे देश में धरती, मिट्टी, पत्थर, पानी और पौधे समेत हर प्राकृतिक संसाधन की पूजा की जाती है।

वाल्मी संस्था के अधिकारी एवं टीम की पर्यावरण के प्रति चिंता एवं गतिविधियों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भी इस कार्य में सहयोग करेगा। किसानों को उपभोक्ता संरक्षण आयोग का लाभ उठाना चाहिए। बीज, रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के उत्पादकों एवं विक्रेताओं को किसी भी प्रकार का नुकसान होने पर कानूनी सहायता ली जा सकती है।

धारवाड़ नेचर फस्र्ट इको विलेज के पीवी हिरेमठ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। वन संसाधनों के विनाश के कारण बारिश कम हो रही है। प्राकृतिक संसाधन केवल मनुष्यों के ही नहीं बल्कि सभी जीवित प्राणियों के हैं। आज, मानव निर्मित कारणों से जैव विविधता विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रही है। हमारे देश के प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण समय की मांग है।

धारवाड़ वाल्मी के निदेशक बीवाई बंडिवड्डर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता कर कहा कि विश्व जल दिवस 2025 का विषय है ग्लेशियरों का संरक्षण। विश्व का उत्तरी और दक्षिणी भाग पूरी तरह बर्फ से ढका हुआ है। भारत को गौरव प्रदान करने वाली हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं स्वच्छ जल का स्रोत हैं।

उन्होंने कहा कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत श्रृंखला में तापमान बढ़ रहा है। यह विश्वास करना कठिन है कि बर्फ पिघलने का हमसे कोई संबंध नहीं है। जल संसाधनों पर वर्तमान अतिक्रमण, वनों की कटाई, औद्योगीकरण, शहरीकरण, अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याएं, प्लास्टिक का उपयोग और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, ये सभी मिट्टी की जल धारण क्षमता को कम कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर बढ़ते कार्बन स्तर के कारण बर्फ पिघलने की दर बढ़ रही है। इससे बाढ़, भूजल स्तर में कमी और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी चुनौतियां पैदा होंगी।

इस अवसर पर जमखंडी के प्रगतिशील किसान पुलकेशी सुरेन्द्र नांदरेकर, दावणगेरे के एच.बी. सतीश, डी. निंगप्पा और कोडी बसवेश्वर को सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम में हलियाल केएलएसवीटीआईटी कॉलेज के छात्र, कर्नाटक सिंचाई निगम के अधिकारी, कर्मचारी और वाल्मी संस्थान के शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मचारियों सहित बड़ी संख्या में किसान और किसान महिलाएं उपस्थित थीं।

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