इलकल (बागलकोट). साहित्यकार राजशेखर कल्मठ ने कहा कि हमारी धरा की संस्कृति और परंपरा की प्रतीक लोककला को बढ़ावा देने के लिए सभी को आगे आना चाहिए।
वे शहर के विजय महांतेश संस्थानमठ के दासोह भवन में कन्नड़ जानपद परिषद के दशमानोत्सव के उपलक्ष्य में तालुक इकाई और महिला इकाई की ओर से आयोजित बुडबडीके (भविष्य बताने वाले) लोककला प्रदर्शन कार्यक्रम का उदघाटन कर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि लोककला प्राचीन काल से उस समय के मूल्य और जनजीवन को दर्शाता है। लोककला मूल संस्कृति का प्रतिबिम्ब है।
कोडीहाळ ग्राम के मंजुनाथ कोंडेकल्ल ने कहा कि बुडबडिके कला आजकल की नहीं बल्कि बहुत पुरानी कला है और इसका अपना इतिहास है। कोडीहाळ ग्राम के बहुत से लोग विभिन्न शहरों में बसे हैं और लोगों को भविष्य बताने के लिए प्रसिद्ध है। मंजुनाथ कोंडेकल्ल ने गोंधली बुडबुडिके कला का प्रदर्शन किया और सभी को मंत्रमुग्ध करते हुए खूब तालियां बटोरी।
प्राध्यापक एम.बी. वंटी ने कहा कि हमारी प्राचीन लोककला को मूल रूप से सुरक्षित रखने पर स्वस्थ, सदृढ़ देश व समाज निर्माण किया जा सकता है।
शिक्षिका श्रवणा शिक्केरीमठ ने बुडबुडिके लोगों की लोककला संस्कृति को छायाचित्र सहित वर्णन किया। साहित्यकार भीमराव ने लोककला का वर्णन किया।
कस्तुरीबाई मेरेवाडी और नेत्रावती अंगडी के नेतृत्व में कलाकारों के दल ने लोकनृत्य प्रस्तुत किया। लक्कव्वा एवं शांवत्रव्वा सण्णप्पनवर ने लोकगीत गाकर दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी।
कन्नड़ जानपद परिषद, इलकल तालुक इकाई अध्यक्ष चन्नबसप्पा लेक्कीहाळ की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में महांतेश होळी, बसवराज बादवाडगी, गुरु गाणगेर, विनोद बारीगिडद, शिक्षिका श्रवणा शिक्केरीमठ, अंजला मारा, शकुंतला बेल्लद को परिषद की ओर से सम्मानित किया गया।
कन्नड़ जानपद परिषद महिला इकाई की अध्यक्ष सविता माटूर, महांतेश गोरजनाल, कळकप्पा अंगडी, चंद्रशेखर मागी, सुगप्पा पत्तार, विजयदास, मल्लय्या गणाचारी, राखी पडनेकर, संगण्णा गद्दी, वैशाली घंटी, विजयलक्ष्मी हरिहर उपस्थित थे।
शिल्पा हिरेमठ एवं बी.बी. बादवाडगी ने प्रार्थना गीत प्रस्तुत किया। एच.बी. कंबली ने स्वागत किया। अमरेश आइहोली ने कार्यक्रम का संचालन किया। अंत में महांतेश बंडी ने आभार व्यक्त किया।