बारिश की कमी से नहीं मिल रहा पर्याप्त पानी
बिजली उत्पादन पर पड़ा प्रतिकूल असर
हुब्बल्ली. उत्तर कन्नड़ जिले के पहाड़ी गांवों में प्राकृतिक रूप से बहने वाले झरने के पानी का उपयोग करके बिजली पैदा करने वाली हाइड्रोपिक इकाइयां पानी की कमी के कारण लगभग ठप हो गई हैं। इसके चलते बिजली के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने वाले परेशान हैं।
उत्तर कन्नड़ जिले में, मानसून और मौसम के समाप्त होने के बाद कुछ महीनों तक प्राकृतिक जल नहरों नलों में प्रचुर मात्रा में बहता है। कई ग्रामीणों ने इस पानी का उपयोग कर घर पर बिजली पैदा कर रहे थे। इसके जरिए उन्होंने बिजली की समस्या से छुटकारा पा लिया था परन्तु इस साल बारिश की भारी कमी के कारण नहरों-नालों और प्राकृतिक रूप से बहने वाले झरनों में पानी की मात्रा काफी कम हो गई है। इसके चलते बिजली उत्पादन के लिए पूरक हाइड्रोपिक टरबाइन मशीन को घुमाने के लिए पानी के दबाव पर्याप्त नहीं हो रहा है। इस कारण बिजली उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
बिजली के मामले में थे आत्मनिर्भर
बिजली उत्पादन करने वाले किसानों का कहना है कि जिले के सिरसी तालुक के हेब्बारनगद्दे, मत्तिघट्टा, केळगिनकेरी, तुलगेरी, तेंगिनमुडी, अंकोला के मोतीगुड्डा, अरेकट्टा, मादनमने, सिद्दापुर के कानसूर सहित जिले के पहाड़ी गांवों में कई वर्षों से बिजली के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की गई थी।
मत्तिघट्टा केळगिनकेरी के नित्यानंद भट्ट कहते हैं कि प्रतिदिन एक किलोवाट बिजली का उत्पादन होता था। अब आधा किलोवाट भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है। कुछ जगहों पर पानी की कमी के कारण मशीन बंद हो गई है। डेढ़ किमी दूर से गुरुत्वाकर्षण की ताकत के जरिए पानी पाइप के जरिए से लगातार घर के पास स्थित हाइड्रोपिक इकाई में लाया जाता था परन्तु इस बार पानी बंद हो गया है।
मत्तिघट्टा के भास्कर हेगड़े ने बताया कि केंद्र सरकार की गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत योजना के तहत 2015 में मत्तिघट्टा भाग के गांवों में 16 से अधिक हाइड्रोपिक इकाइयां स्थापित की गई हैं। इकाई की अधिकांश लागत केंद्र सरकार की ओर से सब्सिडी के रूप में दी गई थी। इसके कारण इस हिस्से में बिजली आत्मनिर्भरता संभव हो सकी थी।
तेंगिनमुडी के बिजली उत्पादक संतोष हेगड़े का कहना है कि हाइड्रोपिक मशीन लगाए 15 साल में इस बार दिसंबर की शुरुआत में ही पानी बंद हो गया है। इसके कारण बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है।
वैकल्पिक बिजली का उपयोग हुआ अनिवार्य
किसानों का कहना है कि ये सभी गांव तालुका केंद्र से 40-50 किमी दूर घने जंगलों में हैं। इसके चलते बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है। अगर इसे मुहैया कराया भी जाए तो पेड़ गिरने और भूस्खलन जैसे कारणों से यह बार-बार समस्या पेश आती है। इस कारण नेटवर्क, इंटरनेट, टेलीफोन, घरेलू प्रकाश व्यवस्था, खाना पकाने की मशीनें चलाने, कृषि के लिए सिंचाई उपलब्ध करने के लिए प्राकृतिक रूप से बहने वाले झरने के पानी की बिजली इनके लिए सहारा बनी हुई थी। धारा प्रवाह कमजोर हुआ है। इसके कारण वहां से टरबाइन इंजन के लिए प्रवाह रुक गया है। इसके चलते वैकल्पिक बिजली का उपयोग अनिवार्य हो गया है।
बिजली खरीदनी पड़ रही है
यह अफसोस की बात है कि जो लोग दशकों तक प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पानी का उपयोग करके बिजली के मामले में आत्मनिर्भर थे, आज ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि उन्हें बिजली खरीदनी पड़ रही है।
–शिवानंद कलवे, पर्यावरण विशेषज्ञ