शिवमोग्गा. आमतौर पर बहुत कम देखे जाने वाले दुर्लभ और लुप्तप्राय उडऩे वाली छिपकली को रविवार सुबह हारोहित्तलू गांव में देखा गया। यह उडऩे वाली छिपकली यहां के एक शिक्षक मालतेश के घर के पास देखी गई। पिछले कुछ समय से यह बच्चों और बड़ों के लिए कौतूहल का केंद्र बना हुआ था।
लोगों की संख्या बढ़ते ही, यह अपने आवास यानी जंगल में वापस लौट गया। अनूठी संरचना और लुप्तप्राय प्रजाति की यह उडऩे वाली छिपकली आम छिपकली जैसा ही दिखती है, लेकिन इसके शरीर पर पंख जैसी अनूठी संरचना होती है। इस संरचना के कारण ही इसने एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उडऩे की क्षमता हासिल कर ली है।
पश्चिमी घाट क्षेत्र में आमतौर पर पाए जाने वाली इस उडऩे वाली छिपकली की आबादी समय के साथ कम होती गई और वर्तमान में यह लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में शामिल है।
साहित्य जगत में लेखक पूर्णचंद्र तेजस्वी के लोकप्रिय उपन्यास ‘कर्वालो’ में उडऩे वाली छिपकली का विस्तृत और आकर्षक वर्णन है, जिसके माध्यम से इस जीव ने और प्रसिद्धि हासिल की है।