रेल के नीचे आकर मरने वालों और घायलों की संख्या में कमी नहींरेल के नीचे आकर मरने वालों और घायलों की संख्या में कमी नहीं

गत तीन सालों में 360 से अधिक लोगों की मौत

यह मामला रेलवे पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है

हुब्बल्ली- देश में सबसे बड़ी परिवहन प्रणाली और अत्याधुनिक सुविधाओं व तकनीकी से लेस होने के बावजूद हर साल रेल दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और घायलों की संख्या में कमी नहीं आ रही है।

दक्षिण-पश्चिम रेलवे (दपरे) डिवीजन के हुब्बल्ली रेलवे पुलिस स्टेशन क्षेत्र में पिछले तीन वर्षों में रेलवे पटरियों की चपेट में आने से 360 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। पिछले तीन वर्षों में ऐसे मामलों में वृद्धि हुई है। अनुमान है कि हर वर्ष 120 लोग मरते हैं। तमाम एहतियाती कदम उठाने के बावजूद ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी रेलवे पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई है।
रेल की पटरियों पर होने वाली मौतों का सबसे आम कारण आत्महत्या है। बाकी मामलों में चलती ट्रेन में गैर-जिम्मेदाराना तरीके से फंसने या ट्रेन से गिरकर लोगों की जान जाने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।

रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या

ट्रेन की चपेट में आकर लोगों की मौत के मामलों में सबसे आम कारण पारिवारिक समस्याएं, असफल प्रेम संबंध, जीवन से तंग आकर और कर्ज बताया जाता है। रेल पटरियों पर सोजाना, रेल क्रॉसिंग होने के बावजूद पटरियों को पार करते समय, ईयरफोन लगाकर पटरियों पर चलते समय, तथा ट्रेन के आते समय पटरियों पर खड़े होकर फोटो खींचने या वीडियो बनाने के दौरान ट्रेन की चपेट में आने से कई लोगों की मौत हो चुकी है। रेलवे अधिकारियों ने बताया कि कुछ अन्य लोग तो बच गए, लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गए और स्थायी रूप से विकलांग हो गए।

असामान्य मृत्यु का मामला

पिछले वर्ष हुब्बल्ली रेलवे पुलिस स्टेशन क्षेत्र में आठ आकस्मिक और चार असामान्य मौतें हुईं। इनमें से अधिकतर गरीब, भिखारी और बुजुर्ग हैं। सर्दियों के दौरान असामान्य मौतों के मामले अधिक होते हैं। पिछले तीन वर्षों में रेलवे स्टेशनों और रेलगाडियों में यात्रा के दौरान दिल के दौरे और अन्य चिकित्सा समस्याओं के कारण 10 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। रेलवे पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यदि टिकट लेकर यात्रा करने वाले किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो रेलवे विभाग उसके परिजनों को मुआवजा देगा।

शव की पहचान करना मुश्किल

रेलवे की पटरियों से टकराकर मरने वालों के शव की पहचान करना मुश्कल है। कुछ की तो पहचान भी नहीं हो पाती। मृतक की पहचान करना एक बड़ी चुनौती है। मोबाइल बैग में मिले सामान, चेहरे व शरीर पर निशानों को देखकर शव की पहचान की जाती है और शव परिजनों को सौंप दिया जाता है। रेलवे पुलिस का कहना है कि अज्ञात शवों को कुछ दिनों तक रखा जाता है और जब उनके वारिस नहीं मिलते तो रेलवे विभाग द्वारा ही अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।

रेलवे विभाग सुरक्षा को प्राथमिकता देता है

ट्रेन के पटरी में फंस कर होने वाली मौतों और चोटों का कारण यात्रियों की लापरवाही है। रेल विभाग ने यात्री सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। सुरक्षा के बारे में भी जागरूकता पैदा की जाती है। यात्रियों को ट्रेन से उतरने-चढऩे तथा एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर जाने के लिए अंडरपास स्काईवॉक एस्केलेटर की व्यवस्था की गई है। कुछ लोग नियम तोड़ते हैं और रेल की पटरियों पर चलते हैं। एक रेलवे अधिकारी ने कहा कि इस दौरान चलती ट्रेन की चपेट में आजाते हैं और अपनी जान गंवा देते हैं।

एहतियाती उपाय

ट्रेन के चलते समय पटरियों के पास खड़े न हों। कानों में ईयरफोन लगाकर पटरियों पर नहीं चलना चाहए। पटरियों पर खड़े होकर मोबाइल फोन पर बात नहीं करना चाहए। ट्रेन के आते समय फोटो न लें। क्रॉसिंग के दौरान रेलवे ट्रैक को पार नहीं करना चाहए। पटरियों पर न बैठें और न ही सोना चाहिए। रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म पर पहुँचने के लिए पटरियों को पार नहीं करना चाहए। चलती ट्रेन के दौरान उसमें नहीं करना चाहए। रुकने से पहले उतरें नहीं। चलती ट्रेन के दरवाजे पर नहीं खड़े होना चाहिए।

यात्रियों की सुरक्षा पर बहुत जोर

रेलवे पुलिस रेल यात्रियों की सुरक्षा पर बहुत जोर दे रही है। यात्रियों को जागरूक रहना चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने वालों को समझाना चाहिए।

रेलवे पुलिस अधिकारी, हुब्बल्ली डिवीजन

जान गंवाने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई

रेलवे विभाग लोगों को रेल की पटरियों पर चलने से रोकने के लिए पूरे वर्ष सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है, परंतु नियमों का उल्लंघन करके ट्रेनों से कटकर अपनी जान गंवाने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।
मंजूनाथ कनमडी, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, दक्षिण पश्चिम रेलवे

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *