कमीशनखोरी से तंग आए किसान, मंडी खाली हावेरी जिले के हानगल तालुक के अल्लापुर का एक किसान कपास को फैक्ट्री में ले जाने के लिए तैयार करते हुए।

कारखानों को कपास बेच रहे किसान

कृषि मंडी से बनाई दूरी

100 रुपए के लिए 6 रुपए कमीशन

प्रति एकड़ 5 क्विंटल से 10 क्विंटल कपास से किसान हो रहे विमुख

हावेरी. राज्य में प्रसिद्ध शहर का कपास मंडी (बाजार) हाल के दिनों में अपना आकर्षण खो चुका है। एपीएमसी की ओर से संचालित इस मंडी में कमीशनखोरी और बिचौलियों के उत्पीडऩ से तंग आकर किसान निजी व्यापारियों की ओर रुख कर रहे हैं।
निर्धारित मात्रा में कपास की आपूर्ति न होने के कारण बाजार पूरी तरह खाली है।

एक समय था जब जिले की अधिकांश भूमि पर कपास उगाया जाता था। शहर के गुत्तल रोड स्थित एपीएमसी स्टोरों पर भी कपास की बिक्री भी तेज थी। सडक़ के किनारे कपास की दुकानों की कतारें देखी जा सकती थीं परन्तु अब कपास की खेती का क्षेत्रफल भी कम हो गया है। कपास के बिना बाजार भी सुना पड़ा है।

कपास की खेती से दूरी बना ली

कपास उगाना महंगा है और श्रमिकों की कमी भी है। इसके अलावा, कपास की खेती को उचित मूल्य भी नहीं मिल रहा है। इससे प्रभावित किसान कपास उगाने वाले क्षेत्रों में मक्का और ज्वार की फसल उगा रहे हैं। कुछ किसानों ने तो कपास की खेती से दूरी बना ली है।

कृषि उपज मंड़ी में प्रवेश नहीं कर रहे किसान

शुरू से ही कपास उगाते आ रहे कुछ किसान मात्र इस फसल को उगाना जारी रखा है परन्तु यह दुखद है कि उन्हें अभी भी उगाए गए कपास का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। जिले के हावेरी, राणेबेन्नूर, शिग्गांव और सवनूर तालुकों के कई गांवों में कपास उगाई गई है। किसान बुवाई, रखरखाव और मजदूरी पर हजारों रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे किसान भी हैं जो प्रति एकड़ 5 क्विंटल से लेकर 10 क्विंटल तक कपास उगाते हैं। फिर भी, वे हावेरी के गुत्तल रोड स्थित कृषि उपज मंड़ी में प्रवेश नहीं कर रहे हैं। किसानों की शिकायत है कि ऐसा कमीशनखोरी और बाजार में दलालों के प्रभाव के कारण हो रहा है।

दलाल ही सबसे अधिक पैसा कमाते हैं

शिग्गांव तालुक के बंकापुर के किसान महालिंगप्पा केंचन्नवर ने कहा कि हम अपने दादा के समय से ही रबी के मौसम में कपास उगाते आ रहे हैं। मानसून के में फसल परिवर्तन होता है। रबी के मौसम में कपास उगाने के बावजूद उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। हावेरी एपीएमसी मंड़ी में जाने पर वहां के दलाल ही सबसे अधिक पैसा कमाते हैं। उन्हें कपास उगाने की लागत भी नहीं मिलती। इस कारण से हमने मंड़ी जाना ही बंद कर दिया है।

एपीएमसी मंड़ी से नाता ही तोड़ दिया

उन्होंने कहा कि पहले हम उन्हें हावेरी मंड़ी (बाजार) ले जाते थे। 100 रुपए के लिए 6 रुपए का कमीशन देना था। इसके अलावा, दलालों को अलग से कमीशन भी मिलता था। कुलियों को भी अलग से भुगतान करना पड़ता था। सबको देने के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं बच रहा था। इसलिए हमने एपीएमसी मंड़ी से नाता ही तोड़ दिया है।

कारखानों को आपूर्ति

किसान अपनी ओर से उगाए गए कपास को बाजार में ले जा रहे हैं और दलालों को बेच रहे थे। वही दलाल कपास को कारखानों में भेज रहे थे। अपनी फसलों के लिए बिचौलियों की जरूरत नहीं है, इस बात को समझ चुके किसान अब सीधे कारखानों की ओर रुख कर रहे हैं। खेतों में उगाए गए कपास को निष्पक्ष रूप से संसाधित कर बिचौलियों की परेशानी के बिना कारखाने में भेज रहे हैं। इसके अलावा, उन्हें बाजार दर के अनुसार कमीशन-मुक्त धन भी मिल रहा है।

अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं

कूडल गांव के किसान बसवंतप्पा ने कहा कि किसान खेतों में कड़ी मेहनत कर फसल उगा रहे हैं परन्तु दलाल मंडी में बैठे कर किसानों से वसूली कर रहे हैं। यही कारण है कि किसानों को उनकी फसलों के लिए उचित न्याय नहीं मिल पा रहा है। कपास मंडी में हो रहे अन्याय से नाराज किसानों ने मंडी का ही बहिष्कार कर दिया है। वे कपास को कारखानों में भेज रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। कोई भी किसान हावेरी मंडी नहीं जा रहा है। कुछ लोग कपास को जिले के बाहर के बाजारों में भी भेज रहे हैं। बाकी लोग गौरापुर सहित विभिन्न स्थानों पर स्थित कारखानों को सीधे कपास बेच रहे हैं।

कमीशन मुक्त व्यापार हो

हानगल तालुक के अल्लापुर गांव के किसान कुतुबुद्दीन ने कहा कि उच्च लागत के बावजूद, हम कपास उगा रहे हैं। उगाई गई फसल का उचित मूल्य मिलना चाहिए। कपास उगाने की लागत बढ़ गई है। बुवाई से कटाई तक, लगभग 30 हजार से 40 हजार रुपए खर्च होते हैं। बकाया मक्का और अन्य फसलों पर ज्यादा खर्च नहीं होता। यही कारण है कि किसान कपास उगाने से हिचकिचा रहे हैं। कृषि उत्पादों के लिए कमीशन मुक्त व्यापार होना चाहिए।

कपास की फसल ही नष्ट हो सकती है

उन्होंने कहा कि हावेरी जिले में सबसे अधिक कपास उगाया जाता था परन्तु अब कपास की फसल का क्षेत्रफल घट रहा है। कपड़े और अन्य उत्पाद बनाने के लिए कपास की आवश्यकता होती है परन्तु किसान धीरे-धीरे कपास की खेती से विमुख हो रहे हैं। कपास का वर्तमान मूल्य प्रति क्विंटल 6 हजार से 8 हजार रुपए है। इससे लागत भी वसूल नहीं होगी। अगर सही दाम नहीं मिला तो आने वाले दिनों में कपास की फसल ही नष्ट हो सकती हैै।

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