अपर कृष्णा, महदायी परियोजना के कार्यान्वयन की अनुमति देंलोकसभा में बोलते हुए सांसद बसवराज बोम्मई

सांसद बोम्मई ने की मांग

हुब्बल्ली. सांसद बसवराज बोम्मई ने मांग की है कि केंद्र सरकार कर्नाटक को आलमट्टी जलाशय की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति देने के लिए हस्तक्षेप करे और सर्वोच्च न्यायालय को अंतर-राज्यीय जल विवादों पर कानून की स्पष्ट जानकारी दी जाए तथा कृष्णा अपर बांध परियोजना के कार्यान्वयन की अनुमति देनी चाहिए।

जल शक्ति मंत्रालय की मांग पर बहस में भाग लेते हुए लोकसभा में बोलते हुए बोम्मई ने कहा कि कर्नाटक में अपर कृष्णा परियोजना के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय की ओर से आदेश दिए 15 वर्ष बीत चुके हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के बीच जल बंटवारे के विवाद के कारण यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। केंद्र सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, अंतर-राज्यीय जल विवादों पर कानून के बारे में सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए और अपर कृष्णा परियोजना के कार्यान्वयन की अनुमति देनी चाहिए।

आलमट्टी जलाशय की ऊंचाई बढ़ाना हमारा अधिकार

उन्होंने कहा कि इस परियोजना में कर्नाटक एक मध्यवर्ती राज्य है और महाराष्ट्र पानी उपलब्ध नहीं कराएगा। आंध्र और तेलंगाना के लोग पानी की मांग कर रहे हैं। हमें अपनी स्थिति के बारे में क्या करना चाहिए? कृष्णा न्यायाधिकरण का आदेश 2010 में जारी किया गया था। अब हम 2025 में आ गए हैं। अभी भी कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई है। आलमट्टी जलाशय की ऊंचाई 524 मीटर तक बढ़ाना हमारा प्रस्ताव नहीं है, यह हमारा अधिकार है। यह न्यायाधिकरण का निर्णय है। इससे महाराष्ट्र में बाढ़ नहीं आएगी। आलमट्टी जलाशय की ऊंचाई बढ़ाने से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को भी लाभ होगा। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच जल बंटवारे का मुद्दा खड़ा हुआ है। उन्हें इसका समाधान करना चाहिए।

महदायी को अनुमति दें

बोम्मई ने कहा कि मेकेदाटु हमारा अधिकार है और इस पर लगभग छह वर्षों से कोई निर्णय नहीं हुआ है। केंद्र सरकार को इस संबंध में पहल करनी चाहिए और सीडब्ल्यूसी तथा सीडब्ल्यूएमए को समस्या के समाधान के निर्देश देने चाहिए। महदायी न्यायाधिकरण ने भी इसी प्रकार का आदेश जारी किया है परन्तु पर्यावरण विभाग अनुमति नहीं दे रहा है। इससे कर्नाटक को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। गोदावरी, महानदी, कृष्णा, कावेरी इंटरलिंकिंग परियोजना में कर्नाटक के साथ अन्याय हो रहा है। इस संबंध में एनडब्ल्यूडीए को उचित निर्देश देकर कर्नाटक के जल अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।

बेड़ती-वरदा को जोडऩा शुरू करें

उन्होंने कहा कि बेड़ती-वरदा पहली नदी जोड़ो परियोजना है, और जोडऩे का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। काम तुरंत शुरू होना चाहिए। बेड़ती-वरदा नदी जोड़ो हावेरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में आता है। इन नदियों को जोडऩे की परियोजना शुरू करनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी पेयजल के लिए नई योजना शुरू करके अच्छा काम कर रहे हैं। इसी प्रकार अंतरराज्यीय जल विवादों को सुलझाने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।

एकल न्यायाधिकरण बनाएं

सांसद बसवराज बोम्मई ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि अंतरराज्यीय जल विवादों को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान न्यायाधीश के नेतृत्व में पूरे देश में एकल न्यायाधिकरण की स्थापना करनी चाहिए और विवाद का छह महीने के भीतर समाधान करना चाहिए। अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम के कारण पूरे देश को आर्थिक और आजीविका के मामले में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, यदि कोई राज्य जल विवाद उठाता है और केंद्र सरकार के समक्ष शिकायत दर्ज कराता है, तो न्यायाधिकरण का गठन करना होगा। अंतरराज्यीय जल विवादों के कारण हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि जल विवाद शुरू होने पर न्यायाधिकरण की स्थापना की जाती है। पिछले पचास वर्षों से तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर में गुजरात, पंजाब और मध्य प्रदेश में न्यायाधिकरण कार्य कर रहे हैं परन्तु कोई समाधान नहीं मिल पाया है। इसके कारण राज्यों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 20 करोड़ रूपए की परियोजना की लागत अब 20,000 करोड़ रुपए हो गई है। कुछ न्यायाधीश बीस से तीस वर्षों तक पद पर बने रहे हैं। इससे काफी वित्तीय बोझ पड़ रहा है। यह विलंबित न्याय नहीं है। न्याय की अवमानना है। अंतरराज्यीय जल विवादों को सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीशों के माध्यम से एकल न्यायाधिकरण का गठन कर जल विवादों के समाधान की व्यवस्था करनी चाहिए।

केंद्र सरकार को बधाई

बोम्मई ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल को देश भर में जल जीवन मिशन योजना लागू करने के लिए बधाई देते हैं। जल का विषय समवर्ती सूची में होने पर भी केंद्र सरकार ने 2017 से इस पर विशेष जिम्मेदारी ले ली है। आजादी के 75 साल बाद भी लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना प्राथमिकता नहीं रही थी। जल सम्पूर्ण विश्व का जीवन-जल है। इस बात पर बहस जारी है कि क्या पानी प्रत्येक व्यक्ति, संगठन या सरकार का है। इसके चलते पानी को लेकर राज्यों के बीच बहस चल रही है। 30 साल पहले भारत ग्रीन जोन में था। अब भारत पीले क्षेत्र में आ गया है। प्राकृतिक संसाधनों को राष्ट्रीय संपदा में परिवर्तित करना चाहिए।
जल संरक्षण और जल उपयोग का उचित प्रबंधन करना चाहिए। हम बड़े बांध बनाकर पानी को संग्रहित करने के बारे में सोच रहे हैं। अब समय आ गया है कि पानी के उपयोग और प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि पानी अनावश्यक रूप से समुद्र में चला जाता है परन्तु स्वाभाविक रूप से, 30 प्रतिशत ताजा पानी समुद्र में जाना चाहिए। तभी पानी वाष्पित होकर वर्षा जल बन जाता है। सिर्फ खारे पानी के वाष्पित होकर पानी बन जाने से बादल नहीं बन सकते।

इस वर्ष बजट में 99,503 करोड़ रुपए आबंटित धनराशि का 74 हजार करोड़ रूपए पीने के पानी के लिए आरक्षित किए गए हैं। इसमें जेजेएम परियोजना के लिए 67 करोड़ रुपए दिए गए हैं। जेजेएम के आगमन से पहले गांवों और शहरी क्षेत्रों के बीच पेयजल की खपत में काफी अंतर था। आजादी के बाद देश में 19 करोड़ घरों को नल से जल उपलब्ध था। इस परियोजना के क्रियान्वयन के बाद जनवरी 2025 तक 15 करोड़ घरों में नल से जल उपलब्ध हो रहा है।

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