ग्रहण के दिन अन्य मंदिरों में पूजा बंद रहती है, परन्तु यहां भक्तों को दर्शन का अवसर
चित्रदुर्ग. चंद्र ग्रहण के दौरान अधिकांश मंदिरों में पूजा बंद कर दी जाती है और मंदिर के द्वार भी बंद कर दिए जाते हैं परन्तु चित्रदुर्ग के ऐतिहासिक नीलकंठेश्वर स्वामी मंदिर में यह परंपरा नहीं है। यहां ग्रहण के समय भी भक्तों के लिए पूजा-अर्चना जारी रहती है और मंदिर के द्वार खुले रहते हैं।
ग्रहण के समय पूजा का समय
रविवार को रात 9.45 बजे से सुबह 1.27 बजे तक राहु ग्रह चंद्र ग्रहण था। जिले के अधिकांश मंदिर इस दौरान बंद रहे परन्तु होललकेरे रोड स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर में निर्धारित समय के अनुसार पूजा-अर्चना की गई।
मंदिर के मुख्य पुजारी शांतमूर्ति ने बताया कि मंदिर में प्रतिदिन सुबह 5 बजे पूजा शुरू होती है। दोपहर 1 बजे मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं, परन्तु शाम 4.30 बजे पुन: द्वार खोले जाते हैं और रात 8.30 बजे तक भक्त भगवान के दर्शन कर सकते हैं। यह सेवा पूरे वर्ष जारी रहती है, चाहे ग्रहण किसी भी प्रकार का हो।
ग्रहण में विशेष तैयारी
अन्य मंदिरों में ग्रहण के कारण पूजा स्थल को गंगाजल और तुलसी जल से शुद्ध किया जाता है। मंदिर में होम, अभिषेक और मंत्रोच्चार के अलावा कोई विशेष पूजा नहीं की जाती परन्तु नीलकंठेश्वर मंदिर में ग्रहण के दौरान नियमित पूजा-अर्चना जारी रहती है और भक्त भगवान शिव के दर्शन कर सकते हैं।
ग्रहण के दौरान मंदिर आने वाले भक्तों को तीर्थ प्रसाद भी वितरित किया जाता है। अन्य मंदिरों में ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिर की सफाई की जाती है, जबकि इस मंदिर में ऐसी व्यवस्था नहीं है।
ग्रहण इसका बाधक नहीं बनता
मंदिर के मुख्य पुजारी शांतमूर्ति बताते हैं कि ग्रहण प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसलिए यहां मंदिर के द्वार बंद करने और पूजा रोकने की परंपरा नहीं है। मंदिर में वर्ष के सभी दिनों में नियमित पूजा होती है और ग्रहण इसका बाधक नहीं बनता।
ऐतिहासिक महत्व
इतिहासकारों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा भरमण्णा नायक के शासनकाल में हुआ था। मंदिर का गौरवशाली इतिहास और उसकी परंपराएं इसे अन्य मंदिरों से अलग पहचान देती हैं। नीलकंठेश्वर मंदिर आज भी क्षेत्रवासियों और भक्तों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित है।
