लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन भाजपा का षड्यंत्रहुब्बल्ली में शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली का स्वागत करते हुए कांग्रेस नेता।

पूर्व मुख्यमंत्री मोइली ने लगाया आरोप

हुब्बल्ली. पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने आरोप लगाया कि लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन में केंद्र की भाजपा सरकार का षडय़ंत्र है। दक्षिण भारतीय राज्य आम तौर पर भाजपा के खिलाफ हैं। यहां की सीटें कम की जाए, तो उन्हें (भाजपा को) फायदा होगा, यही भाजपा का दुर्भावनापूर्ण इरादा है। इसीलिए भाजपा ने क्षेत्रों के परिसीमन का निर्णय लिया है।

शहर में शनिवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए मोइली ने कहा कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन में जनसंख्या को मुख्य मानदंड नहीं माना जाना चाहिए। भौगोलिक कारकों पर विचार करना चाहिए। केवल कुछ राज्यों की नहीं, बल्कि पूरे देश की तस्वीर पर विचार करना चाहिए।

कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण भारतीय राज्य उन्होंने कहा कि जनसंख्या को नियंत्रण में लाने में सफल रहे हैं। यदि लोकसभा सीटों के परिसीमन में जनसंख्या को ध्यान में रखा जाता है तो यह इन राज्यों के साथ अन्याय होगा। यह राष्ट्रहित में जनसंख्या नियंत्रण के लिए सजा की तरह होगा। भाजपा की ओर से विचाराधीन निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन फार्मूले से देश की स्वतंत्रता और अखंडता को नुकसान पहुंचने की संभावना है।

हनीट्रैप कोई नई बात नहीं

मोइली ने कहा कि हनीट्रैप की अवधारणा नई नहीं है। विपक्ष ऐसी ही चीजों की तलाश में रहता है। किसी को भी उनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए। सदन में विपक्ष का आचरण ठीक नहीं है। यह विनम्रता का संकेत नहीं है। उनकी अशिष्टता के कारण उन्हें निलंबित किया गया है। उनका आचरण बहुत खराब होने के कारण विपक्षी विधायकों को निलंबित किया गया है।

उन्होंने कहा कि यह हमारी पार्टी ही थी जिसने सदन में हनीट्रैप के बारे में बहस छेड़ी थी। हमारी पार्टी के मंत्रियों को इस पर आंतरिक चर्चा करनी चाहिए थी परन्तु सदन में इस पर खुलकर चर्चा नहीं करनी चाहिए थी। इससे पार्टी के लिए शर्मिंदगी और असुरक्षा की स्थिति पैदा होगी।

मोइली ने कहा कि मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाओं से सरकार का असुरक्षित महसूस करना तय है। ऐसी चर्चाएं सार्वजनिक रूप से नहीं होनी चाहिए। सत्ता बंटवारे पर फैसला पार्टी आलाकमान करेगा।

त्रिभाषा फार्मूला नहीं थोपना चाहिए

मोइली ने कहा कि त्रिभाषा फार्मूला नहीं थोपना चाहिए। राज्यों पर कोई भाषा नहीं थोपी जा सकती। यहां तक कि केंद्र सरकार भी ऐसा नहीं कर सकती। भाषा सीखने के संदर्भ में, कर्नाटक में नीति है कि शिक्षा संबंधित क्षेत्रीय भाषा में प्रदान की जानी चाहिए। केन्द्रीय कांग्रेस की भी यही नीति है। यह निर्णय संबंधित राज्यों पर निर्भर है कि वे द्विभाषी फार्मूला अपनाना चाहते हैं या नहीं। उनके पास मौका है।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *