कषाय संसार परिभ्रमण को बढ़ाता हैसमणी डॉ.सुगमनिधि।

हिंदुपूर. एसएस जैन समणी डॉ. सुगमनिधि ने कहा कि कषाय संसार परिभ्रमण को बढ़ाता है। कोई भी व्यक्ति अपने घर में चोर को घुसने नही देगा क्योंकि चोर घर में चोरी कर नौ दो ग्यारह हो जाएगा। उसी तरह से क्रोध, मान, माया और लोभ यह चार कषाय भी लुटेरे की तरह ही हैं। यह चारों कषाय हमारे आत्म धन को लुटते वाले हैं।

हिंदुपूर में स्थित जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए समणी डॉ. सुगमनिधि ने कहा कि क्रोध बहुत बुरी बला है। क्रोध में आदमी अपनी सुध-बुध खो बैठता है। क्रोध में लिए गए निर्णय गलत भी हो सकते हैं। मन, वचन और काया से क्रोध किया जाता है। क्रोध की वजह से जितने कर्मबंध होता हैं उससे कही गुणा अधिक वचन से और वचन से कही गुणा ज्यादा मन से बंधते हैं। क्रोध में विवेक के नैत्र बंद हो जाते हैं। क्रोध को अंहकार से नहीं बल्कि क्षमा से जीता जा सकता है। क्रोध में आदमी गलत कदम उठा लेता है इससे अहित घटना घट सकती है।

उन्होंने कहा कि मन, वचन और काया पर नियंत्रण रखना चाहिए। इससे मन शांत रहता है और सुकून की जिंदगी जी सकते हैं। डॉ. पदमचंद्र फरमाते हैं कि जिसने मान का क्षय कर लिया उसके भीतर क्षमा गुण प्रकट हो जाते हैं। ठाणांग सूत्र में क्रोध आने के चार कारण बताएं गए हैं। पहला कारण क्षेत्र, दूसरा वास्तु, तीसरा शरीर और चौथा वस्तु है। क्रोध हमेशा नीचे की ओर जाता है। आफिस में अधिकारी अपने से नीचे काम करने वाले कर्मचारी पर, बड़े छोटे पर क्रोध करते हैं। एक क्रोध हजारों वर्षों की तपस्या को नष्ट कर देता है। इसलिए हमें हमारी आत्म कल्याण के लिए सदा कषायों से दूर रहना चाहिए। प्रतिदिन सामायिक, स्वाध्याय, ध्यान साधना करने से कर्मों की निर्जरा होती है।

समणी ने कहा कि धर्म ही रक्षा कवच है। इसलिए धर्म ध्यान, त्याग तपस्या से जीवन को उन्नयन करने का प्रयास करेंगे तो एक दिन आत्मा परमात्मा बन सकती है। क्षमा याचना करना वीरों का गुण है। किसी के भी साथ राग व्देष नहीं रखना चाहिए। भगवान महावीर ने जीवन जीने की सरल कला बताई है। भगवान महावीर के बताए हुए मार्ग पर चलने से आत्मा का कल्याण होगा। मनुष्य जीवन मिलना दुर्लभ है। हम जिस तरह का कार्य करेंगे वैसे ही कर्म बंधन होता जाएगा। हमारे कर्मों का फल हमें ही भुगतना पड़ेगा। भौतिकता से नाता तोड अध्यात्मिकता से नाता जोडऩे का पुरूषार्थ करना चाहिए।

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