समुद्र में नहीं मिल रही मछली
कठिनाई का सामना कर रहे मछुआरे
कारवार. भारी बारिश और बार-बार आए चक्रवातों से पहले ही प्रभावित हुए गहरे समुद्र में मछली पकडऩे वालों को एक बार फिर घाटे का सामना करना पड़ा है। लाखों परिवार निर्भर मछली पकडऩे का क्षेत्र अब संकट में है।
मत्स्य पालन विभाग ने मछली प्रजनन को सुविधाजनक बनाने के लिए पिछले वर्ष 17.5 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। समुद्र में कृत्रिम चट्टान बनाने पर काफी धन खर्च करने के बावजूद इस वर्ष इसका उपयोग नहीं किया गया है। उत्तर कन्नड़, उडुपी और दक्षिण कन्नड़ जिलों सहित कुल 56 स्थानों पर समुद्र में सीमेंट से बनी कृत्रिम चट्टानें स्थापित की गईं थी। पड़ोसी केरल और तमिलनाडु में भी ऐसा ही किया गया था।
श्रम की कोई बचत नहीं हो रही
जनवरी में राज्य के समुद्र तट पर झींगा की विभिन्न प्रजातियां सामान्यत: उपलब्ध रहती हैं। अब भू ताई (भू माता) से मछलियां मिलती थीं। इस बार, दोनों मछलियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। मंडी और करिकड्डी नामक झींगे दुर्लभ हो गए हैं। गहरे समुद्र में मछली पकडऩे वाले मछुआरे चिंतित हैं कि केवल बांगडा मछली ही उपलब्ध है और श्रम की कोई बचत नहीं हो रही है। मार्च में होने वाला आखिरी मछली पकडऩे का मौसम ही एकमात्र उम्मीद है।
महिलाओं को भी हुई समस्या
समुद्र में मछलियों की कम उपलब्धता के कारण कई नावें मछली पकडऩे नहीं जा रही हैं। पर्शिन और मछली पकडऩे वाली ट्रॉलर दोनों प्रकार की नौकाओं के लिए मछलियों की कमी है। उत्तर कन्नड़ जिले के कई बंदरगाहों पर नावें खड़ी देखी जा सकती हैं। गहरे समुद्र में मछली पकडऩे की यह स्थिति लाखों परिवारों को बेरोजगारी की ओर धकेल रही है। मछली बेचना वाली महिलाओं को भी समस्या हुई है।
कुछ नहीं बच रहा
प्राकृतिक मत्स्य पालन में मछलियों की कमी के कारण प्रतिबंधित हल्का मत्स्य पालन तेजी से प्रचलित हो रहा है। इससे नाव से मछली पकडऩे में बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है परन्तु मत्स्य पालन मंत्री ने स्वयं कहा था कि राज्य में हल्की मछली पकडऩे पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। अब, यह शिकायत बढ़ती जा रही है कि देशी नाव मत्स्य पालन में मछलियां नहीं मिल रही हैं। कड़ी मेहनत की कमाई पूरी खर्च हो रही है, कुछ नहीं बच रहा है।
शुरुआत में ही बाधा
इस बार भारी बारिश के कारण गहरे समुद्र में मछली पकडऩे का काम देर से शुरू हुआ। जैसे ही बारिश कम हुई, बार-बार तूफान आ गया और पहले दो महीनों तक मछली पकडऩा संभव नहीं हो सका। अगस्त के महीने में, जब मछली पकडऩे का मौसम शुरू हुआ, तो उत्तर कन्नड़ जिले में केवल 556 टन मछली का उत्पादन हुआ। पिछले वर्षों की तुलना में इस बार 30फीसदी मछलियां भी नहीं पकड़ी गई हैं। पिछले वर्ष राज्य में लगभग आठ लाख टन समुद्री मछली का उत्पादन हुआ था। मछली पकडऩे के मौसम में केवल तीन महीने बचे हैं। इसके चलते यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष लक्ष्य तक पहुंचने की संभावना बहुत कम है।
मछली उत्पादन में कमी आ सकती है
इस वर्ष मछली उत्पादन थोड़ा कम है। मछली पकडऩे वाली नावें पर्याप्त मछलियां नहीं पकड़ पा रही हैं। इस बार झींगा और मछली भी दुर्लभ हो गए हैं। यदि यही स्थिति जारी रही तो इस वर्ष कुल मछली उत्पादन में कमी आ सकती है।
–प्रतीक शेट्टी, उपनिदेशक, मत्स्य विभाग