डॉ. एस.वी. पाटिल ने दी जानकारी
बीदर. बीदर बागवानी महाविद्यालय के डीन और प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एस.वी. पाटिल ने कहा कि काजू (एनाकार्डियम ऑक्सीडेंटेल एल.), एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसल है, जिसे पहली बार पुर्तगालियों की ओर से 16वीं शताब्दी में गोवा में भारत में लाया गया था और बाद में यह अन्य राज्यों में फैल गई।
वे बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, बागलकोट, बागवानी महाविद्यालय, बीदर और काजू एवं कोको विकास निदेशालय, कोच्चि के संयुक्त तत्वावधान में बीदर में आयोजित “काजू फसल की उन्नत उत्पादन तकनीक, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन” विषय पर जिला स्तरीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि काजू एक लचीला और सूखा-प्रतिरोधी पेड़ है जो खराब मिट्टी की स्थिति को भी सहन कर लेता है, तथा वनों की कटाई और मिट्टी के कटाव को रोककर पर्यावरणीय लाभ प्रदान करता है। भारत में काजू का उत्पादन 2021-22 में 779 हजार टन था और 2022-23 में बढक़र 810 हजार टन हो गया है। बीदर में काजू उगाने के लिए उपयुक्त प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं।
उन्होंने काजू उगाने और अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पानी और मिट्टी के उचित उपयोग और संरक्षण पर जोर दिया।
कलबुर्गी कृषि महाविद्यालय के सेवानिवृत्त डीन डॉ. सुरेश पाटिल ने कहा कि काजू खाने से हृदय रोग का खतरा कम होता है।
जिला पंचायत के योजना निदेशक जगन्नाथ मूर्ति ने कहा कि काजू मूल रूप से उष्णकटिबंधीय फसल है।
वीरभद्रेश्वर एग्रो इंडस्ट्रीज के निदेशक अमोल विजापुरे ने काजू के प्रसंस्करण और बिक्री के बारे में बताया।
सेमिनार में जिले के 150 किसानों ने भाग लिया और काजू प्रसंस्करण इकाई की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी प्राप्त की।
डॉ. प्रवीण जोल्गीकर, डॉ. वी.पी. सिंह, डॉ. अशोक सूर्यवंशी, डॉ. प्रशांत, डॉ. हरीश टी. और डॉ. कड्ली वीरेश ने तकनीकी जानकारी दी। वी.पी. सिंह ने प्रास्ताविक भाषण दिया। डॉ. कड्ली वीरेश ने स्वागत किया और डॉ. प्रशान्त ने धन्यवाद अर्पित किया।