अध्यक्ष प्रो. गोविंद राव ने अधिकारियों को दिए निर्देश
कर्नाटक क्षेत्रीय असंतुलन निवारण समिति
हुब्बल्ली. कर्नाटक क्षेत्रीय असंतुलन निवारण समिति के अध्यक्ष प्रो. गोविंद राव ने कहा कि डॉ. डी.एम. नंजुंडप्पा रिपोर्ट के कार्यान्वयन में हुए विकास और बदलाव का अध्ययन कर, इसके लिए पूरक तौर पर असंतुलन और पिछड़ेपन को समाप्त करने के लिए आवश्यक कारकों की सिफारिश करने के लिए समिति राज्य के सभी जिलों का अध्ययन दौरा कर रही है।
वे धारवाड़ जिला पंचायत सभा भवन में विधायकों, जिला स्तरीय अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ परामर्श बैठक कर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय असंतुलन के चलते दिए गए नंजुंडप्पा की रिपोर्ट को किस स्तर तक राज्य में क्रियान्वित हुआ है इस बारे में राज्य के 26 जिलों का दौरा कर अध्ययन किया है। आगामी अक्टूबर तक रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
गोविंद राव ने कहा कि क्षेत्रीय असंतुलन के चलते नंजुंडप्पा की ओर से दी गई रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 114 तालुकों में 22 वर्षों में राज्य सरकार ने 31 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इस अवधि के दौरान किन तालुकों का विकास हुआ है और कौन से तालुक अभी भी पिछड़े हुए हैं। इसका पता लगाने के लिए कर्नाटक क्षेत्रीय असंतुलन निवारण समिति का गठन किया है।
उन्होंने कहा कि पिछले सात महीनों से समिति राज्य का दौरा कर अध्ययन करने के साथ पिछड़े तालुकों में कौन से विकास कार्यक्रम लागू किए जाने की आवश्यकता है तथा क्या कमियां हैं इस बारे में हम कई सूचकांकों के माध्यम से जान रहे हैं। हम संघ-संस्थाओं और अधिकारियों से बातचीत के जरिए जानकारी हासिल कर रहे हैं।
गोविंद राव ने कहा कि राज्य के दौरे के दौरान, कल्याण कर्नाटक के चारों संभागों में अभी भी पिछड़े क्षेत्र हैं, जबकि कित्तूर कर्नाटक में भले ही कोई पिछड़ा तालुक नहीं है फिर भी पिछड़े क्षेत्र हैं। इसके चलते हम तालुक स्तर पर जाकर, इसका अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपी है।
उन्होंने कहा कि हम नंजुंडप्पा रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्रीय असंतुलन के लिए जारी धनराशि का अनुचित वितरण समेत कई कारकों का अध्ययन करेंगे। आगामी विकास कार्यक्रमों पर समिति काम कर रही है। जैसा कि कर्नाटक क्षेत्रीय असंतुलन निवारण समिति के अध्ययन में पाया गया है, कर्नाटक राज्य के कुछ क्षेत्र पिछड़े हैं, जबकि अन्य विकसित हैं। इस कारण पिछड़े तालुकों के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान और जिलों में किए जाने वाले विकास पर सलाह देने के लिए समिति का गठन किया गया है।
धारवाड़ जिले के विकास से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर देते हुए गोविंद राव ने कहा कि धारवाड़ जिले में सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है। शुष्क खेती है। इसके चलते यहां के विकास की तुलना सिंचाई व्यवस्था वाले अन्य जिलों से नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा कि शिक्षा, उद्योग और स्वास्थ्य के बारे में जानने के बाद सुझाव दिए जाएंगे कि जिले में क्या विकास की जरूरत है और क्या नहीं। कर्नाटक में 114 तालुके हैं, जिनमें से 59 तालुकें उत्तर कर्नाटक में और 58 तालुके दक्षिण कर्नाटक में हैं और यह पता चला है कि उत्तर कर्नाटक के कुछ हिस्से बहुत विकसित नहीं हैं।
प्रो. गोविंद राव ने कहा कि रोजगार के अवसर पैदा करना, शिक्षा, कौशल, बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना और महिला केंद्रित इकाइयां स्थापित करने जैसे सुझाव हमारे सामने आए हैं।
श्रम एवं जिले के प्रभारी मंत्री संतोष एस. लैड ने कहा कि उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मुफ्त उपलब्ध करानी चाहिए। यदि गरीब लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य को उच्च प्राथमिकता दी जाए तो वे आर्थिक रूप से विकसित होंगे। मध्यम वर्ग शिक्षा पर सबसे अधिक धन खर्च कर रहा है। छोटे व्यवसायों और उद्योगों में सबसे अधिक गिरावट आ रही है। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर इन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी चाहिए। गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा उपलब्ध करानी चाहिए। यदि उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान की जानी है तो बुनियादी पाठ्यपुस्तकों को अद्यतन किया जाना चाहिए। आगामी पीढ़ी के लिए अद्यतन पाठ्यपुस्तकों के बिना शैक्षिक सुधार असंभव है।
विधायक एन.एच. कोनरेड्डी ने कहा कि धारवाड़ जिले में उद्योगों के साथ-साथ सिंचाई को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। बेण्णी हल्ला, तुप्परी हल्ला और विभिन्न छोटी नहरों के जल का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए।
उन्होंने कर्नाटक क्षेत्रीय असंतुलन निवारण समिति के अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपकर कहा कि कर्नाटक का क्षेत्रीय विकास असंतुलित है और कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र को कल्याण कर्नाटक की तरह विशेष दर्जा देना चाहिए।
विधायक महेश टेंगिनकाई ने कहा कि हुब्बल्ली-धारवाड़ जुड़वां शहर हर दृष्टि से अनुकूल स्थान पर हैं और भौगोलिक दृष्टि से भी अच्छी स्थिति में हैं। व्यापारिक लेन-देन के अधिक अवसर हैं। औद्योगिक विकास तथा नए एवं बड़े उद्योगों की स्थापना की अनुमति देनी चाहिए। इस क्षेत्र में सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से विकास की भरपूर संभावनाएं हैं।
जिलाधिकारी दिव्य प्रभु ने पर्यटन विकास, उद्योगों की स्थापना, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना तथा ज्ञान आधारित उद्योगों की स्थापना पर बात की तथा सुझाव दिए।
उन्होंने कहा कि चूंकि धारवाड़ जिला वर्षा आधारित क्षेत्र है, इसलिए कृषि पर अधिक जोर देना चाहिए। इसलिए गांवों और तालुकवार विकास देखा जा सकता है। जिले में व्यवसाय और कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है, जिसमें आम और मिर्च की खेती पर मुख्य ध्यान दिया जा रहा है, और यदि कृषि आधारित किसानों को सब्सिडी देकर प्रोत्साहित किया जाए तो कृषि में विकास देखा जा सकता है।
जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भुवनेश पाटिल ने कहा कि विकास में भौतिक एवं आंतरिक प्रगति महत्वपूर्ण है। गांव स्तर पर अधिक निवेश की आवश्यकता है। शैक्षिक विकास पर जोर देना चाहिए। जिले में कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और कंपनियां खोलकर बेरोजगारी को समाप्त किया जा सकता है। छोटी-छोटी औद्योगिक कम्पनियां हैं और उन्हें बढ़ावा देने से अधिक विकास हो सकता है।
संवाद बैठक में कर्नाटक चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष संशीमठ, सचिव रवींद्र बलिगार, सदस्य एवं व्यवसायी महेंद्र सिंघी, वाल्मी के पूर्व निदेशक डॉ. राजेंद्र पोद्दार, वरिष्ठ वकील सोमशेखर जाडर, वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद् डॉ. एस.एम. शिवप्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार मल्लिकार्जुन सिद्धन्नवर, पूर्व सीएमडीआर निदेशक डॉ. अन्निगेरी, महिला कार्यकर्ता शारदा गोपाल, व्यवसायी जगदीश हिरेमठ और गैर-सरकारी संगठन की प्रमुख ओट्टिली अनबन कुमार ने जिले के विकास के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न मुद्दे प्रस्तुत किए। उनके बारे में चर्चा हुई।
समिति के सदस्य डॉ. सूर्यनारायण एम.एच., डॉ. एस.टी. बागलकोट और जिला पुलिस अधीक्षक डॉ. गोपाल ब्याकोड, पुलिस उपायुक्त मानिंग नंदगांवी और हुब्बल्ली धारवाड़ शहरी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शाकीर सनदी मंच पर उपस्थित थे।
बैठक में विभिन्न विभागों के जिला स्तरीय अधिकारी, गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और आर्थिक विशेषज्ञों ने भाग लिया था।
समिति के सदस्य सचिव तथा योजना एवं वित्त विभाग के सचिव डॉ. विशाल आर. ने स्वागत कर बैठक का संचालन किया।