विविध मंत्रों, जड़ीबूटियों से किया पाश्र्वनाथ का अभिषेक
भद्रावती. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि भक्तियोग सबसे सरल योग है। ज्ञानयोग, ध्यानयोग, तपयोग आदि कठिन हैं। भगवान की भक्ति में मन को एकाग्र कर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। भगवान के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण की भूमिका भक्ति को सार्थक करती है। जैनदर्शन में वर्णित भगवान का स्वरूप समझने जैसा है। जो सर्वदोषों से रहित, राग-द्वेष मुक्त आत्मा हो, सिर्फ उन्हीं को जैनदर्शन में भगवान माना जाता है।
पाश्र्वनाथ जिनालय में शनिवार को विविध मंत्रों, मुद्राओं, जड़ीबूटियों के साथ संगीतमय विशिष्ट अभिषेक के बाद आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य ने कहा कि ऐसे परमात्मा की निष्काम भक्ति ही आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। इसलिए जैनदर्शन के अनुसार भगवान और देवी-देवता में मौलिक अंतर है। यहां भगवान का स्थान सर्वोपरि है। उनके बाद गुरुतत्व और फिर देवी-देवताओं का क्रम आता है। इस भक्तियोग को न समझने वाले अक्सर भटक जाते हैं। वे इस लौकिक कामनाओं के वशीभूत होकर भगवान के बदले देवी-देवताओं की पूजा में ही उलझ जाते हैं।
भक्ति के स्वरूप और महत्व को समझाते हुए जैनाचार्य ने कहा कि तेवीसवें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ का जन्म अ_ाइ सौ बहत्तर वर्ष पूर्व वाराणसी में हुआ था। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड उनकी विहरण भूमि रही। उन्होंने अपने सत्तर वर्ष के साधना काल में लाखों लोगों को पाप मुक्त कर सुख-शांति और अध्यात्म का मार्ग दिखाया। सौ वर्ष की आयु में झारखंड के सम्मेदशिखर पर्वत पर उन्होंने निर्वाण की प्राप्ति की।
आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का उल्लेख करते हुए कहा कि सम्मेदशिखर जैनधर्म के बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि है। कभी अंग्रेज अपने जमाने में इस पर्वत पर सुअरों का एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना खोलने जा रहे थे। तब स्वामी विवेकानंद के समकालीन श्वेताम्बर जैन विद्वान बैरिस्टर वीरचंद राघव गांधी ने गुजरात से कोलकत्ता आकर उच्च न्यायालय में मुकदमा जीतकर अंगेजों को कत्लखाना खोलने से रोका था। उसके लिए उन्होंने बंगाली सीखी थी। बाद में बिहार के राजा को मुंहमांगा धन देकर श्वेताम्बर जैन समाज ने सम्मेदशिखर पहाड़ खरीद लिया था। इन सबके ऐतिहासिक दस्तावेज आज भी सुरक्षित हैं। पिछले कुछ वर्षों से कुछ राजनेता और राजनीतिक पार्टियां अपने वोटबैंक के लिए स्थानीय जातियों को भडक़ाकर सम्मेदशिखर तीर्थ को उलझाना चाहते हैं। पिछले दिनों 25-30 हाथियों के झुंड ने आधी रात को आकार वहां अनधिकृत रूप से बनी मांसाहार की दुकानों को तहसनहस कर दिया था और सोए हुए लोगों को सूंड से उठाकर पटका था। आज भी उस पर्वत पर दैविक शक्तियों का निवास माना जाता है।