पाश्र्वनाथ मंदिर की सेंतीसवीं वर्षगांठ
सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन
भद्रावती. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने नवपद की महिमा का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि वर्तमान युग अध्यात्म और भौतिकता के बीच का गहरा संघर्ष है। अगर यहां अध्यात्म हारता है तो कोरी भौतिकता के भरोसे संसार को जिलाना असंभव होगा।
पाश्र्वनाथ मंदिर की सेंतीसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित त्रिदिवसीय महोत्सव में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य ने कहा कि भौतिकता की पराकाष्टा मनुष्य जाति को पागल बना देगी। आगामी पच्चीस-पचास वर्ष इस दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मानव जाति निर्णायक मोड़ पर खड़ी हैं। या तो आध्यत्म जीतेगा और हम सब बचेंगे, अन्यथा भौतिकवादी मानसिकता के चलते करीब-करीब सब-कुछ तबाह हो जाएगा।
जैनाचार्य ने कहा कि अरिहंत की पूजा और साधना आध्यात्मिक उन्नति का महत्वपूर्ण कारक तत्व है। यह भोग-उपभोग और साधन-सामग्रियों की याचक मनोवृत्ति एवं विकृति से परे हटकर, प्रकृति और संस्कृति की शुद्ध साधना है। भौतिकता से ओतप्रोत इस युग में मानसिक शांति और संतोष के लिए अरिहंत तत्व की साधना करनी चाहिए। अरिहंत तत्व यानी आत्मा के गुणों की निर्मल साधना। दोषमुक्त होने के लिए गुणों की पूजा जरूरी है।
रात्रिकालीन ज्ञानसत्र में गणि पद्मविमल सागर ने कहा कि मित्रों का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अच्छे मित्रों की खोज करें।
आचार्य विमल सागर सूरीश्वर और गणि पद्मविमल सागर आदि श्रमण समुदाय के सान्निध्य में रविवार को पाश्र्वनाथ जिनालय में सिद्धचक्र महामंडल विधान का भव्य आयोजन हुआ। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र तथा तप पद की विस्तार से पूजा-अर्चना कर मंत्रजाप किए गए। तत्पश्चात गुरूपदुका, अड़तालीस लब्धिपद, नवग्रह, वास्तुदेवता और तीर्थंकरों के देव-देवियों की पूजा हुई।
बेंगलूरु, जमखंडी, दावणगेरे, हिरियूर, शिवमोग्गा, चिक्कमगलूरु आदि अनेक शहरों के सैकड़ों श्रद्धालु इस अवसर पर उपस्थित थे।
जैन संघ के अध्यक्ष रतनचंद लूणिया ने बताया कि सोमवार को पाश्र्वनाथ जिनालय की सेंतीसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में प्रात: साढ़े आठ बजे सत्तरभेदी पूजा पढ़ाई जाएगी। फिर शिखर पर विविध अनुष्ठानों के बाद शुभ मुहूर्त में नया ध्वजारोहण होगा।