प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की चौंकाने वाली रिपोर्ट
सैकड़ों गांवों की जीवनरेखा बनी नदियां प्रदूषण के खतरे में
विशेषज्ञों ने चेताया – ‘जीवनजल’ बन सकता है ‘विषजल’
बागलकोट. कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल (केएसपीसीबी) की ताजा रिपोर्ट ने राज्यभर में चिंता की लहर दौड़ा दी है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि कृष्णा, कावेरी, भीमा, तुंगभद्रा, भद्रा, शिम्शा, काबिनी, अर्कावती समेत राज्य की 12 प्रमुख नदियों का पानी अब सीधे पीने योग्य नहीं रह गया है।
राज्य की जीवनदायिनी कृष्णा नदी को प्रदूषण के मानकों में ‘सी ग्रेड’ श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि इसका पानी केवल मत्स्य पालन या कृषि के लिए उपयुक्त है — पीने के लिए नहीं।
प्रदूषण के मुख्य कारण
बागलकोट जिले में शक्कर कारखानों का अपशिष्ट जल, घरेलू सीवेज और नालों का गंदा पानी सीधे कृष्णा नदी में मिल रहा है। इससे विजयपुर, रायचूर, यादगीर और बेलगावी जिलों में भी जल गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
हालांकि सतह से देखने पर पानी साफ प्रतीत होता है, लेकिन उसमें मौजूद अदृश्य रासायनिक तत्व धीरे-धीरे मानव शरीर में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ रहे हैं।
बागलकोटे जिले की स्थिति
जिले के करीब 205 गांव कृष्णा नदी के पानी पर निर्भर हैं। यही जल इन गांवों की प्यास बुझाता है, लेकिन अब वही जीवनजल प्रदूषित हो चुका है।
बीलगी तालुक के तेग्गी ग्राम स्थित जैकवेल पंप हाउस से फिल्टर किया गया पानी बीलगी नगर व आसपास के गांवों में आपूर्ति किया जा रहा है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने जनता में भय का माहौल पैदा किया है।
कृष्णा नदी का प्रवाह क्षेत्र
कृष्णा नदी का उद्गम महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से होता है। यह नदी बेलगावी, बागलकोट, विजयपुर, रायचूर होते हुए आंध्र प्रदेश में प्रवेश करती है। कुल 1,400 किलोमीटर लंबी इस नदी का 483 किमी हिस्सा कर्नाटक में बहता है। यह नदी कृष्णा ऊपरी तट परियोजना के अंतर्गत राज्य के लाखों हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई उपलब्ध कराती है।
जीवनदायिनी अब असुरक्षित
केएसपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य की कोई भी नदी ‘ ए ग्रेड’ यानी सीधे पीने योग्य श्रेणी में नहीं आती। केवल नेत्रावती नदी को ‘बी ग्रेड’ मिला है, जिसका पानी घरेलू उपयोग के लिए उपयुक्त है- वह भी उचित उपचार के बाद।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्रदूषण ‘जीवनजल’ को ‘विषजल’ में बदल सकता है।
सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को चाहिए कि औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज और रासायनिक बहाव को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं, ताकि राज्य की नदियां पुन: स्वच्छ और सुरक्षित बन सकें।
