जैन परंपरा में मंदिरों और तीर्थों का सबसे प्राचीन इतिहासअप्रवासी सभी जाति-वर्गों की हुई विशेष सभा

अप्रवासी सभी जाति-वर्गों की हुई विशेष सभा

शिवमोग्गा. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि मंदिर मानव सभ्यता के खोजे हुए बहुत प्राचीन और अद्भुत आविष्कार हैं। मंदिरों से संस्कृति की रक्षा और विकास हुआ है। भक्तियोग में लोगों को जोडऩे में मंदिरों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जैन परंपरा में मंदिरों और तीर्थों का सबसे पुराना इतिहास है।

स्थानीय आदिनाथ जिनालय में शनिवार को मंत्रों, मुद्राओं और विविध जड़ी-बूटियों से युक्त विशिष्ट अभिषेक विधान में श्रावक-श्राविकाओं को मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य ने कहा कि मथुरा के संग्रहालय में सुरक्षित जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा पुरातत्व की दृष्टि से पांच हजार वर्ष पुरानी है। निराकारी परमात्मा के साकार स्वरूप हैं मंदिर। इनसे मनुष्य को भगवान की पहचान होती है, उनके गुणों की आराधना-उपासना का सशक्त आलंबन मिलता है, इनकी भक्ति से मन को शक्ति और शांति मिलती है। ये पूर्ण वैज्ञानिक तथ्य है।

उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि दुनिया में कोई भी आस्तिक व्यक्ति अमूर्तिपूजक नहीं है। जो अमूर्तिपूजक हैं, वे भी अपने आराध्य के किसी न किसी प्रतीक, चिन्ह या स्मृति को जीवंत रखकर उसे पूजनीय मानते हैं। जैसे मक्का, मदीना, गुरुद्वारा, समाधि स्थल, कीर्तिस्तंभ, स्थानक, तेरापंथ भवन, मीनार, निशान, गुरुग्रंथ साहिब, काबा का पत्थर आदि। भले ही यहां मूर्तियां न हों, परंतु इन्हें आराध्य, पूजनीय, श्रद्धेय, पवित्र माना जाता है। ये उस-उस मान्यता के लोगों को अपने आराध्य-उपास्य की याद दिलाते हैं, साधना के लिए प्रेरित करते हैं।
इस अवसर पर गणि पद्मविमल सागर ने कहा कि वेद, उपनिषद, गीता, कुरआन, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहिब, आगम, मोजेज आदि धर्मग्रंथ कोई जीवित भगवान, देव, अल्लाह, गुरु या आराध्य नहीं हैं, फिर भी ये प्राणों से प्यारे हैं और पूजनीय हैं। यह निराकार आराध्य की साकार स्वीकृति और साधना ही हैं।

संगीत और भक्तिगीतों के साथ अभिषेक विधान में पूजा के परिधान में सैकड़ों श्राद्धालुओं ने भाग लिया। सवा नौ बजे खचाखच भरे कुवेंपु रंग मंदिर में तीसरी संयुक्त धर्मसभा आयोजित हुई। जैनाचार्य के आगमन से शिवमोग्गा में जैनसमाज के लिहाज से ऐसे बड़े आयोजन पहली बार आयोजित हुए।

दोपहर साढ़े तीन बजे भगवान महावीर भवन में राजस्थान गुजरात के अप्रवासी राजपूत, राजपुरोहित, सीरवी, आंजणा पटेल, सेन, प्रजापत, देवासी आदि सभी जाति-वर्गों के लोगों की विशेष सभा का आयोजन हुआ। सभी ने संस्कृति की रक्षा और सुसंस्कारों की आवश्यकता पर बल दिया। सद्भावना कार्यक्रम में संघ के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे। स्थानीय विधायक, पुलिस अधीक्षक, उप पुलिस अधीक्षक, अनेक पुलिस निरीक्षक और विविध संगठनों के पदाधिकारियों ने जैनाचार्य के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।

रविवार को प्रात: यूथ सेमिनार के आयोजन के बाद आचार्य विमल सागर सूरीश्वर, गणि पद्मविमल सागर आदि संतगण भद्रावती, होसदुर्ग, हिरियूर, टुमकूर, बेंगलूरु के प्रवास के लिए प्रस्थान करेंगे।

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