फसल बर्बादी और कर्ज से परेशान किसान
कलबुर्गी. पिछले महीने जिले में लगभग 6 किसानों ने फसल की क्षति, लगातार कर्ज के बोझ सहित कई अन्य कारणों से आत्महत्या कर ली है।
अन्नदाता की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। एक ओर किसान अपनी लगातार उगाई जा रही फसलों के नष्ट होने, तो दूसरी ओर थोड़ी सी फसल का भी उचित मूल्य नहीं मिलने से कर्ज के बोझ के डर से फांसी लगा रहा है। यह जिले के किसानों की एक काली कहानी है।
मौत को गले लगा रहे हैं युवा किसान
जिले के कमलापुर तालुक के कोट्टगा गांव के युवा किसान 35 वर्षीय सूर्यकांत अंबाराय सूरजमुखी की खेती पर निर्भर था। मौजूदा भूमि का उपयोग तुअर सहित अन्य फसलों को उगाया गया था। सरकारी बैंकों से निजी ऋण लेना लगातार उत्पीडऩ का स्रोत रहा। उसने 25 फरवरी को आत्महत्या कर ली। पिछले महीने की 21 तारीख को कलगी तालुक के हुलगेरा गांव के 30 वर्षीय युवा किसान प्रकाश रविन्द्र ने भी अपनी फसल बर्बाद होने से तंग आकर फांसी लगा ली थी।
तुअर नुकसान ने दिया बड़ा झटका
तुअर का कटोरा के नाम से प्रसिद्ध कलबुर्गी जिले के किसान लगातार कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इस बार अच्छे मानसून के कारण प्रमुख नकदी फसल ज्वार की बुवाई लगभग 6.35 लाख हेक्टेयर में की गई थी परन्तु रबी में भारी बारिश के कारण जड़ सडऩ रोग का हमला हो गया था। परिणामस्वरूप, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1.82 लाख हेक्टेयर यानी लगभग 5 लाख एकड़ क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। किसानों के अनुसार 50 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गई है। इसके अलावा, बाजार भाव में गिरावट भी किसानों को हताश कर रही है और उन्हें मौत की ओर धकेल रही है।
एक महीने में आत्महत्या करने वाले किसान
-कलबुर्गी तालुक के बसवराज संक्रोंडगी ने 11 मार्च को
-आलांद तालुक के एलेनावदगी के मणिकराव अशोक सुतार ने 11 मार्च को
-कालगी तालुक के कोडदुर गांव के दत्तात्रेय हुणसप्पा ने 8 मार्च को
-कालगी तालुक के किसान प्रकाश रविन्द्र मे 21 फरवरी को
-कमलापुर तालुक के कोड्डगा गांव का सूर्यकांत अंबाराय ने 25 फरवरी को
-आलंद तालुक के बबलाद के ऐके गांव के रेवणसिद्ध बंगरगी ने 31 जनवरी को
सत्र में कोई प्रस्ताव नहीं
जिले में बोई गई तुअर की लगभग 30 फीसदी फसल नष्ट हो गई है। किसानों की आत्महत्या की संख्या लगातार बढ़ रही है। कलबुर्गी में जिलाधिकारी कार्यालय के सामने तीन दिनों तक सडक़ जाम कर विरोध प्रदर्शन किया गया, जबकि कई संगठन चार महीने से लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
इतना सब होने के बावजूद कृषक समुदाय इस बात से हैरान है कि जिले का कोई भी प्रतिनिधि सत्र में तुअर से हुए नुकसान के बारे में नहीं बोला। किसान नेता मांग कर रहे हैं कि और एक सप्ताह सत्र होगा और वहां बात कर सरकार का ध्यान आकर्षित मुआवजा दिलवाने के जरिए किसानों को राहत देनी चाहिए।
किसान आंदोलनकारी शरणबसप्पा ममशेट्टी ने कहा कि यह कहावत कि “तुअर उगाने पर जीवन होगा खुशहाल” इस बार यह कहावत पूरी तरह झूठी साबित हुई है। यह बेहद दुखद है कि जिले के किसी न किसी कोने में हर सप्ताह एक किसान आत्महत्या कर रहा है। सरकार को इस बारे में चिंतित होना चाहिए, परन्तु उसने हमारी ओर से आंखें मूंद ली हैं।
किसान आंदोलनकारी अव्वन्ना म्याकेरी का कहना है कि हर दिन किसानों की आत्महत्या की खबरें सुनना दिल दहला देने वाला है परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि जिले के जनप्रतिनिधियों को ही इससे कोई लेना-देना नहीं है। अगर सरकार तुअर का मुआवजे देने का वादा नहीं करेगी है तो और अधिक किसान अपनी जान गंवाएंगे।