सिर्फ छापेमारी तक सीमित लोकायुक्त, सजा शून्यलोकायुक्त

सिर्फ छापेमारी तक सीमित लोकायुक्त, सजा शून्य

ढाई साल में 180 से अधिक छापेमारी

18 भ्रष्ट अधिकारी निलंबित

एक भी अधिकारी को नहीं मिली सजा

हुब्बल्ली. लोकायुक्त पुलिस की ओर से सरकारी अधिकारियों से पैसे वसूलने का मामला पूरे राज्य में चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं दूसरी ओर, पिछले ढाई साल में लोकायुक्त पुलिस प्रभाग ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में 180 से अधिक सरकारी अधिकारियों के यहां छापेमारी की है, और एक भी अधिकारी को सजा नहीं मिली है!

कभी राज्य में भ्रष्ट अधिकारियों की नींद उड़ाने वाले लोकायुक्त पुलिस प्रभाग को अपनी पुरानी ताकत वापस मिले ढाई साल हो गए हैं परन्तु इससे पहले लोकायुक्त के विकल्प के तौर पर बनाए गए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की तरह ही लोकायुक्त पुलिस प्रभाग ने भी खुद को भ्रष्ट अधिकारियों की पहचान करने और समय-समय पर छापेमारी करने तक ही सीमित रखा है।

वर्ष 2023 से अब तक लोकायुक्त पुलिस ने आय से अधिक संपत्ति के मामलों में 180 से अधिक सरकारी अधिकारियों पर छापे मारे हैं, लेकिन एक भी सरकारी अधिकारी को सजा नहीं मिली है। आरोप है कि लोकायुक्त के जाल में फंसे अधिकांश सरकारी अधिकारी काम पर लौट रहे हैं और अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रहे हैं।

केवल 81 सरकारी अधिकारी निलंबित

जिन 180 से अधिक मामलों में लोकायुक्त अधिकारियों ने छापेमारी की है, उनमें से केवल 81 सरकारी अधिकारियों को सेवा से निलंबित किया गया है। शेष का निलंबन न्यायालय के स्थगन, संबंधित विभाग से अनुमति और अन्य प्रक्रियाओं के कारण बाधित हुआ है। 150 मामलों में लोकायुक्त पुलिस ने छापेमारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए सक्षम प्राधिकरण को रिपोर्ट सौंप दी है। इनमें से 2023 में छापेमारी करने वाले बीबीएमपी नगर नियोजन विभाग के एक सहायक निदेशक से पूछताछ के लिए अभियोजन पक्ष को सरकार से अनुमति मिल गई है। शेष 60 फीसदी मामलों में भ्रष्ट अधिकारियों से पूछताछ के लिए सक्षम प्राधिकरण से अनुमति मिलनी बाकी है।

अधिकांश मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने में देरी

लोकायुक्त पुलिस का कहना है कि विभिन्न सरकारी विभागों में उच्च पदों पर आसीन होकर भ्रष्टाचार के जरिए करोड़ों रुपए मूल्य की संपत्ति अर्जित करने के आरोप में लोकायुक्त पुलिस की जाल में फंसे अधिकांश के खिलाफ अभी तक कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। कुछ ही मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं। जो मामले पहले एसीबी में थे, उन्हें भी लोकायुक्त पुलिस विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है, जिससे यहां के कर्मचारियों पर उनकी जांच का भी बोझ बढ़ गया है। करोड़ों रुपए की संपत्ति वाले अधिकारियों के छोटे-छोटे दस्तावेज जुटाने और साक्ष्य जुटाने में ही वर्षों लग जाते हैं।

बेहतर तरीके से काम कर रही लोकायुक्त पुलिस

सक्षम प्राधिकरण की ओर से अनुमति मिलने में देरी होने पर जांच करने और आरोप पत्र दाखिल करने में समय लगता है। प्रत्येक मामले में जांच अधिकारियों को समुचित साक्ष्य जुटाने होते हैं। लोकायुक्त पुलिस बेहतर तरीके से काम कर रही है।
डॉ. सुब्रह्मण्येश्वर राव, आईजीपी, कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस प्रभाग

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