कलबुर्गी. अच्छे आचरण के आधार पर जेल की सजा से छूट मिलने के बावजूद एक कैदी को गरीबी के कारण जेल से रिहा होने के लिए तीन महीने तक इंतजार करना पड़ा। अंतत: जेल में कमाए गए पैसे से ही उसे रिहा होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह एक जेल में बंद व्यक्ति की रिहाई की सफल कहानी है।
जेल अधिकारी ने मानवीय स्पर्श देकर इसमें मदद की है।
रायचूर जिले के लिंगसुर तालुक के दुर्गप्पा को हत्या के मामले में जेल में डाल दिया गया था। कई वर्षों बाद, अदालत ने 2013 में, उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई और हत्या हुए परिवार को दिए जाने वाले मुआवजे के रूप में एक लाख रुपए जुर्माना लगाया था।
बाद में अच्छे बर्ताव के आधार पर 28 नवंबर 2023 को दुर्गप्पा को रिहा किया गया था परन्तु एक लाख रुपए जुर्माने की रकम का भुगतान नहीं कर पाया था। दुर्गप्पा ने अपने रिश्तेदारों, भाई और कुछ गैर सरकारी संगठनों (जो कैदियों की देखभाल कर रहे थे) से जुर्माने का भुगतान कर उसे ले जाने का अनुरोध किया परन्तु कोई नहीं आया। क्योंकि दुर्गाप्पा के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था।
दुर्गप्पा हुआ आजाद
उस समय मदद करने वाली जेल अधिकारी डॉ. अनीता आर. ने कैदी को लिंगसगुर भेज दिया और उसे उसकी कमाई हुई धनराशि निकालने की अनुमति दे दी। इसके जरिए उन्होंने दिखाया कि जेल का भी एक मानवीय चेहरा होता है।
पथ प्रदर्शक बनीं जेलर
जेल से बाहर आने के बाद चेहरे पर मुस्कान होने के बावजूद कहां जाएं, किस के पास जाएं, समझ नहीं पाने से दुर्गप्पा असहाय होकर खड़ा था। यह देखकर जेलर डॉ. अनीता ने फिर से पहल की और कर्मचारियों के साथ लेकर लिंगसुर की बस चड़ाकर उसे रवाना किया।
पुलिस कर्मियों के साथ उसके गृहनगर वापस भेज दिया
जेल विभाग की मुख्य जिम्मेदारी कैदियों को सजा के साथ-साथ सुधार के अवसर प्रदान करना है। कलबुर्गी जेल ने इसे निभाने में अपनी जिम्मेदारी पूरी की है। इसमें खुशी और कार्य से संतुष्टि भी है। जब दुर्गप्पा को रिहा किया गया तो उसका स्वागत करने कोई नहीं आया। 68 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक को बाहर नहीं रखना संभव नहीं। इसी प्रकार इसे ऐसे ही छोड़ा नहीं जा सकता था। इसके बाद उसे पुलिस कर्मियों के साथ उसके गृहनगर वापस भेज दिया गया।
– डॉ. अनीता आर., जेल अधिकारी, कलबुर्गी